गुरुवार, 13 सितंबर 2012

सुन्दरता हमेसा वरदान नही होती

दोस्तों ईस्वर से हमें बहुत सी चीजें उपहार स्वरूप मिली इनमें से हैं सुन्दरता। सुन्दरता प्रकर्ति का एक ऐसा गुण हैं, जिसके बिना हम दुनिया की कल्पना भी नहीं कर सकते। हमारे वेदों शास्त्रों में ऋषि महिरीषियों ने  प्रकृतिक सुन्दरता का जो वर्णन किया हैं उससे पता चलता हैं की मानव हमेसा से सुन्दरता का प्रशंसक रहा हैं। किसी का सुन्दर होना उसके लिए वरदान माना जाता हैं। पर क्या सुन्दरता सच में हमेशा ही वरदान होती हैं।

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के दक्षिण सीमा पर फरीदाबाद व गुडगाँव के की सीमा पर पड़ता हैं मांगर गाँव। 5 हजार एकड़ में फैला हुआ इसके क्षेत्र में 4500 एकड़ से ज्यादा भाग पहाडी मीलों तक फैला अरावली का विस्तार चारों तरफ से पहाडी के बीचों बींच घाटी में बसा हुआ छोटा सा गाँव इसकी सुन्दरता को जो देख ले ठगा सा खड़ा रह जाए। मांगर बनी का 500-700 एकड़ का संरक्षित (स्थानीय लोगों द्वारा) वन क्षेत्र व सैकड़ो तरह के पशु पक्षी इस गाँव की सुन्दरता में चार चाँद लगा देते हैं।

मांगर बनी 



मागर बनी में सैकड़ो जंगली पेड़ों की परजतियाँ जो दुर्लभ मानी जाती हैं, सुरक्षित बची हुई हैं। कुछ पर्यावरण विदों के अनुसार यह क्षेत्र न सिर्फ देखने में सुन्दर हैं बल्कि यह एन सी आर की 3 बड़े शहरों (राष्ट्रिय राजधानी दिल्ली फरीदाबाद व् गुडगाँव) के लिए फेफड़ों का काम करता हैं। वहीँ भू-जल विभाग भारत सरकार का मानना यह हैं की इस क्षेत्र में पहाडी में दरार होने से यहाँ पानी का रिसाव बहुत ज्यादा हैं इसलिए यह फरीदाबाद गुडगाँव व राजधानी के  भू-जल की पूर्ति करने में इस क्षेत्र का बहुत बड़ा योगदान रहता हैं।

किन्तु इसकी सुन्दरता इसके बाकी सभी गुणों पर भारी पड़ रहीं हैं अपनी भोगोलिक सिथति व अपनी सुन्दरता की वजह से यह भी उन लोगों की नजरों में चढ़ गया जिनके अनुसार हर सुन्दर चीज पर उनका अधिकार हैं क्योंकि उनके पास पैसा हैं। सरकार उनके पैसे से बनती हैं कानुन उनकी मर्जी से बनते हैं उनके पास किसी भी चीज को खरीदने की ताकत हैं। फिर इतनी सुन्दर जगह पर उनका 5-10 एकड़ का फार्म हाउस क्यों न हों। चाहे उसके लिए 2-4 हजार पेड़ नस्ट क्यों न हो जाए। चाहे उसके लिए कितने ही पशु पक्षीयों को बेघर क्यों न होना पड़े। सर्वोच्च न्यायालय भले ही मना करे पर सरकार तो उनके पैसे से ही बनती हैं। वो लोग कानून को बदलवाने की ताकत रखते हैं।

मैं कई बार यह सोचता हूँ की काश यह गाँव इतना सुन्दर ना होता काश यह राजधानी के इतने समीप ना होता तो शायद कोई यहाँ इतने फार्म हाउस न होते हरेक आदमी यहाँ 100 गज खरीदने की कोशिश नहीं करता। तब शायद जंगल में प्लास्टिक व शराब की बोतले न मिलती। जंगली जानवर यहाँ चैन से रह सकते। गाँव के लोग अपने पूर्वजों की तरह इसके संरक्षण की तरफ ध्यान देते। पैसे वाले लोग यहाँ अपनी अय्याशी का अड्डा  (फार्म हाउस) नहीं बना पाते। इसिलए सुन्दरता हमेशा वरदान नहीं होती। 

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